आज सुबह का मिज़ाज़ कुछ अलग नज़र आ रहा था
कमरे में एक भीनी भीनी खुसबू सी थी
और बिस्तर की सिलवटें कुछ उस ओर भी बिखरी थी
ये कानों को छूती हुई लम्बी सी मुस्कान
साफ़ बयां कर रही थी की
इस खुशनुमा मौसम की ज़रूर कोई खास वजह है
बहुत अच्छे से तो याद नहीं कल रात का
बस हमारी लम्बी बातें चल रही थीं
और तुमसे एक बार मिल पाने की तड़प
तुम्हें बस एक बार छू पाने की चाहत
फोन की स्क्रीन पर लिखे चाँद शब्दों
और कुछ smileys तक सिमट के रह जा रही थी
मुझे ध्यान है मैं तुम्हारी
लाल दुपट्टे में भेजी तस्वीर से
फ़ोन के इस पार आने की गुज़ारिश कर रहा था
और तुम्हारे काले सूट से मैच करती
माथे की छोटी सी बिंदी को
एक बार चूमने की आज़माइश कर रहा था
ढेर सारी बातें थीं जो बोलनी थी तुमसे
जो कहने को चलता तोह बात फिर रूकती नहीं
और लिखने को चलता तोह ये रात निकल जाती
मेरे ख्यालों और हमारी बातों के बीच
कब आँख लगी कुछ ध्यान नहीं
पर याद है की तुम कह रही थी की जल्द मिलूंगी
अच्छा सुनो, तुम आयी थी क्या